बिहार की राजनीति में अगर बाहुबलियों और डॉन का जिक्र ना हो तो वहां की राजनीति की दाल फीकी नजर आती है

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पटना में गंगा किनारे बसे मोकामा की आबादी यूं तो 2 लाख (साल 2011 की जनगणना के मुताबिक) है लेकिन यहां की माटी से उसका दामन ‘लाल’ कर देने वाले बाहुबली ज्यादा निकले हैं. सूरजभान सिंह, ललन सिंह और संजय सिंह कुछ उदाहरण हैं. बिहार की राजनीति में अगर बाहुबलियों और डॉन का जिक्र ना हो तो वहां की राजनीति की दाल फीकी नजर आती है.
बात मोकामा की हो और अनंत सिंह का नाम न आए, ये हो नहीं सकता. ‘छोटे सरकार’ और ‘मोकामा के डॉन’ कहे जाने वाले निर्दलीय विधायक अनंत सिंह का नाम ही बिहार में खौफजदा करने के लिए काफी है. कहते हैं कि मोकामा में अनंत सिंह की समानांतर सरकार चलती है.
रौबदार मूंछें, काउबॉय हैट और हमेशा चश्मा पहनने के शौकीन अनंत का रसूख इतना कि कानून-व्यवस्था धरी की धरी रह जाती है. अनंत सिंह पर सैकड़ों आपराधिक मामले चल रहे हैं. अपराध भी छोटे मोटे नहीं. कत्ल, फिरौती, डकैती, अपहरण और रेप जैसे संगीन मामले. घर से एके-47 और बम तक बरामद हो चुके हैं. अनंत सिंह फिलहाल 23 अगस्त 2019 से न्यायिक हिरासत में हैं.
कहानी यहां से शुरू होती है
दिल्ली से हावड़ा के लिए ट्रेन पकड़ेंगे तो पटना से 40 मिनट बाद आएगा बाढ़. यहां दो अगड़ी जातियों राजपूत और भूमिहार की खूनी जंग का इतिहास रहा है. यहीं के लदमा में पैदा हुए अनंत सिंह. चार भाइयों में सबसे छोटे. बताया जाता है कि जिस वक्त अनंत सिंह पहली बार जेल गए, उनकी उम्र महज 9 साल की थी. उसके बाद वे जुर्म की दुनिया में ऐसे बढ़े कि बड़े-बड़े नेता भी उनके रुबाब के आगे घुटने टेकने लगे. अब सवाल उठता है कि जिस गंगा के तट पर बाहुबलियों का कोई अकाल नहीं है, वहां अनंत सिंह का इतना खौफ कैसे है.
दरअसल अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह बिहार के बाहुबली नेता थे. पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव की सरकार में मंत्री भी रहे. इसका मतलब राजनीति में शुरुआती पंजे मारना अनंत को भाई दिलीप ने सिखाया. 80 के दशक में कांग्रेस विधायक रहे श्याम सुंदर धीरज के लिए बूथ कब्जाने का काम करने वाले दिलीप उन्हीं को मात देकर जनता दल के टिकट पर विधायक (1990-2000) बने थे. सफेदपोश हो चुके थे और उन्हें दबदबा कायम रखने के लिए एक भरोसेमंद की जरूरत थी. ऐसे में लंबी-चौड़ी कद काठी और रौबदार रवैये वाले भाई से बेहतर साथी कौन हो सकता था, जो दो हत्याएं करके रंगदारी की राह पर आगे निकल चुका था.
वैराग्य भी ले चुके थे अनंत
कहा ये भी जाता है कि कम उम्र में अनंत सिंह वैराग्य ले चुके थे. साधु बनने के लिए अयोध्या और हरिद्वार में घूम रहे थे. लेकिन साधुओं के जिस दल में थे, वहां झगड़ा हो गया. मन वैराग्य के संसार से उचटने ही लगा था कि सबसे बड़े भाई बिरंची सिंह की हत्या हो गई. फिर क्या था अनंत पर बदला लेने का भूत सवार हो गया. वे दिन-रात भाई के हत्यारे को खोजते रहे. एक दिन पता चला कि हत्यारा किसी नदी के पास बैठा है तो उसे मारने के लिए तैरकर नदी पार की और ईंट-पत्थरों से कुचलकर मार डाला.
नीतीश ने थामा था हाथ
लेकिन अनंत सिंह की कहानी एक शेपक की तरह आती है, उस कहानी के बीच, जो बिहार की राजनीति के दो सबसे ताकतवर ध्रुवों ने लिखी- नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव. बिहार में पिछले 30 वर्षों में इन्हीं दो नेताओं का शासन रहा है. एक जमाने में बिहार में जनता दल के दो बड़े नेता लालू और नीतीश साथ थे. लालू यादव सीएम बनें इसके लिए पूरा जोर लगाया नीतीश कुमार ने.
बात 1994 की है. लालू यादव को सीएम बने 4 साल हो चुके थे और नीतीश कुमार और उनके समर्थकों को साइड लाइन कर चुके थे. साल 1996 का लोकसभा चुनाव आया तो नीतीश को टेंशन होने लगी कि बिना लालू के समर्थन के नैया पार कैसे लगेगी क्योंकि बाढ़ के जातिगत समीकरण उनका गणित बिगाड़ रहे थे. तब उनकी नजर पड़ी रौबदार व्यक्तित्व वाले नेता अनंत सिंह पर. बाढ़ इलाके के जानकार अकसर बताते हैं कि साल 1996, 1998 और 1999 लोकसभा चुनावों में नीतीश कुमार के लिए अनंत का साथ कितना जरूरी था.
अनंत से ‘छोटे सरकार’ का सफर
राजपूत और भूमिहार की खूनी इतिहास का गवाह रहे बाढ़ में लोग रात में घरों से निकलने से भी डरते थे. लेकिन अनंत सिंह अपने भूमिहार समुदाय के रक्षक के रूप में उभरे. सितारे तब चमके जब नीतीश कुमार ने साल 2005 में जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर उन्हें मोकामा विधानसभा से उतारा. इसे लेकर मीडिया में काफी बातें भी उछलीं कि नीतीश कुमार, जिन्होंने बिहार की राजनीति से अपराधिकरण को खत्म करने की कसम खाई थी, वे ऐसे शख्स को टिकट दे रहे हैं, जिसके खिलाफ संगीन मामले दर्ज थे.  लेकिन बावजूद इसके अनंत सिंह मोकामा विधानसभा सीट से जीतने में कामयाब रहे. अजगर पालने के शौकीन अनंत सिंह साल 2005 से मोकामा विधानसभा सीट से विधायक हैं.
छठ पर धोती बांटना, रोजगार के लिए गरीबों को तांगे देकर मदद करना और रमजान के दिनों में इफ्तार करना. ये कुछ ऐसी बातें हैं, जिनके जरिए अनंत गरीबों के मसीहा और छोटे सरकार बन गए. उनके सामने नीतीश कुमार की हाथ जोड़ते हुए फोटो भी वायरल हो चुकी हैं. हालांकि साल 2015 में जब लालू और नीतीश साथ आए तो अनंत सिंह ने जेडीयू से इस्तीफा दे दिया. साल 2015 का विधानसभा चुनाव तो उन्होंने जेल से लड़ा था. एक दिन भी प्रचार नहीं किया. लेकिन बावजूद इसके वो 18 हजार से ज्यादा वोटों से जीत गए थे.
जुर्म की काली दुनिया का बेताज बादशाह
-साल 2004 में बिहार एसटीएफ ने मोकामा में अनंत सिंह के आवास पर छापेमारी की थी. तब घंटों गोलीबारी हुई थी. एक जवान और अनंत सिंह के आठ लोग भी मारे गए. गोली अनंत सिंह को भी लगी लेकिन वे बचकर निकल गए. गिरफ्तारी भी नहीं हुई थी.
-जब साल 2005 में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने तो उनके और अनंत के बीच बड़े और छोटे का रिश्ता चल रहा था. लेकिन साल 2007 में एक महिला से दुष्कर्म और हत्या के मामले में अनंत सिंह का नाम सामने आया. जब इस बारे में एक निजी चैनल के पत्रकार उनसे बात करने पहुंचे तो उनके समर्थकों ने पत्रकारों की जमकर पिटाई की और बंधक बनाकर रखा. मामले ने तूल पकड़ा और विधायक की गिरफ्तारी भी हुई लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुप्पी साध ली.
-अनंत की खौफ कथा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब जीतन राम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री थे, तो अनंत ने उन्हें खुलेआम धमकाया था. अनंत ने नीतीश सरकार में मंत्री रहीं परवीन अमानुल्लाह को भी धमकी दी थी. उनका एके-47 लहराते हुए एक वीडियो भी वायरल हो चुका है.
-इन सबकी वजह से नीतीश पर अनंत सिंह बोझ बनते जा रहे थे. इन सबके बीच साल 17 जून 2015 को अनंत सिंह के परिवार की किसी महिला को बाढ़ के बाजार में चार युवकों ने छेड़ दिया. इसको लेकर काफी हंगामा हुआ. आरोप है कि अनंत सिंह के इशारे पर उनके गुर्गों ने चारों युवकों को अगवा कर लिया. जिनमें से एक युवक की दर्दनाक तरीके से हत्या कर दी गई थी. अगले दिन उसका शव जंगल में पड़ा मिला था.
-इस मामले में अनंत सिंह को गिरफ्तार किया गया था. मामले में पुलिस ने कई आरोपियों को गिरफ्तार किया था और बाकी तीनों अपहृत युवकों को भी बरामद कर लिया था. पूछताछ के दौरान आरोपियों ने खुलासा किया था कि विधायक ने चारों युवकों को सबक सिखाने का आदेश दिया था, लेकिन वे बाकी युवकों को मारते इससे पहले ही पुलिस वहां पहुंच गई.
-विधायक बनने के पांच साल बाद ही अनंत सिंह की संपत्ति कई गुना बढ़ गई है. 2005 में अनंत सिंह ने अपने चुनावी हलफनामे में 3.40 लाख रुपये की मामूली संपत्ति होने की घोषणा की थी, जो 2010 में बढ़कर 38.84 लाख रुपये तक पहुंच गई. अब तक सार्वजनिक तौर पर ऐसी कोई जानकारी सामने नहीं आई है कि उनसे कभी इस दुर्लभ तरीके से और तत्काल अमीर बनने के बारे में कोई सवाल किया गया हो.
-2007 में जानवरों के मेले में वह लालू यादव का घोड़ा लेकर पहुंचे थे. अनंत सिंह को पता था कि लालू उन्हें अपना घोड़ा नहीं बेचेंगे, इसलिए उन्होंने किसी और के जरिए घोड़ा खरीदा था. अजगर पालने जैसी अपनी सनक के लिए चर्चित ये विधायक महोदय पहले भी कई विवादों में फंस चुके हैं. मसलन, दूसरे की मर्सिडीज का मनमाने ढंग से दबावपूर्वक इस्तेमाल करना या फिर एक कार्यक्रम के दौरान हवाई फायरिंग करना भी उनके रिकॉर्ड में दर्ज है.
-बाढ़ में अनंत सिंह के पैतृक घर में 16 अगस्त 2019 को पुलिस ने छापेमारी की थी. उनके घर से एक एके 47 राइफल, दो हैंड ग्रेनेड, मैगजीन में भरे हुए 26 जिंदा कारतूस बरामद हुए थे. इस मामले में उनके खिलाफ यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था. इस मामले में विधायक अनंत सिंह ने दिल्ली के साकेत कोर्ट में सरेंडर किया था. 23 अगस्त, 2019 से न्यायिक हिरासत में हैं.(UNA)

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