सोमवार की सुबह 96 साल की उम्र में हॉकी के दिग्गज पदम श्री बलबीर सिंह का निधन हो गया । सांस लेने की दिक्कत के कारण उन्हें 8 मई को मोहाली के अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टर के मुताबिक उनका निधन दिल के दौरे के कारण हुआ। वह पिछले 2 साल से बीमार थे।राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अलावा तमाम खेलों से जुड़े खिलाड़ियों ने खबर पर शोक जताया।
हॉकी की दुनिया में जो नाम भारत का मेजर ध्यानचंद ने बनाया था वह नाम बलबीर सिंह ने बखूबी कायम रखा। उनके नाम कई रिकॉर्ड है। गोलकीपर के तौर पर अपना करियर शुरू करने वाले बलवीर ने 24 की उम्र में 1948 ओलंपिक की टीम में सेंट्रल फॉरवर्ड के तौर पर जगह बनाई। उन्होंने स्वतंत्र भारत के पहले हॉकी फाइनल में शुरुआती 15 मिनट में दो गोल दागकर मैच को भारत के पलडे में कर दिया था। इसके अलावा 1952 हेलसिंकी और 1956 मेलबर्न में बतौर खिलाड़ी स्वर्ण पदक जीता और 1975 में विश्व कप विजेता टीम के मैनेजर रहे।
1948 के गोल्ड को याद करते हुए बालवीर ने अपनी आत्मकथा में लिखा ‘ जैसे ही हमारा राष्ट्रगान शुरू हुआ और तिरंगा ऊपर उठने लगा मुझे लगा कि मैं उस तिरंगे के साथ उड़ने लगा हूं। उस समय देश भक्ति का जो एहसास हुआ वह दुनिया के किसी भी ऐसा से बढ़कर था। हमने जब इंग्लैंड को हराया तो यह हमारे लिए एक गौरव का पल था’।
1957 में पदम श्री हासिल करने वाले वह पहले खिलाड़ी बने थे और 1958 में भारत सरकार ने उनके चित्र वाले डाक टिकट भी जारी किया था।
अपने 11 साल के करियर में 61 मैचों में 246 गोल करने वाले बलवीर सिंह गोलमशीन के नाम से प्रसिद्ध रहे। 2012 में लंदन ओलंपिक के दौरान अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने उन्हें आधुनिक ओलंपिक इतिहास के महानतम 16 दिग्गज ओलंपियन के रूप में सम्मानित किया था। यह सम्मान पाने वाले एकमात्र भारतीय रहे।
और जानकारी के लिए आप उनकी आत्मकथा द गोल्डन हैट्रिक और द गोल्डन यार्डसस्टिक इन क्वेस्ट ऑफ एक्सीलेंस पढ़ सकते हैं।
बलवीर सिंह ने अप्ने फेसबुक पेज पर 1 जनवरी 2019 को येह पोस्ट किया था- मंजिलें भी जिद्दी हैं रास्ते भी जिद्दी हैं पर क्या करूं मैं हौसले भी तो मेरे जिद्दी हैं।
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